इक हर्फ में दुनियां लिख रहा हूं

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इक हर्फ में दुनियां लिख रहा हूं,
मैं कागज पर मां लिख रहा हूं ।

रब वो नहीं ना रब से बढ़कर,
लेकिन दोनों जहां लिख रहा हूं।

मरते दम तक जिसको पढ़ूंगा ,
ऐसी इक दास्तां लिख रहा हूं।

मुझ मे बसती मुझमे रहती,
मुझमें मेरी जां लिख रहा हूं।

बदलते मौसम से हूं परेशां,
मैं धूप में सायबां लिख रहा हूं।

निजात -ए -जुल्मत रहे जन्नत,
दोनों के दरमियां लिख रहा हूं।