मैं जो सो जाऊं तो मुझमें ही जगता रहता है

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मैं जो सो जाऊं तो मुझमें ही जगता रहता है,
तू जैसे दिन है के ढलता निकलता रहता है।

तू मेरे संग है जैसे हवा है सांसों के,
तो सिलसिला मेरी सांसो का चलता रहता है

तू सरापा मेरे जिस्म मेरी रूह में तू,
मेरा वजूं है के मुझमें सिमटता रहता है।

बड़ा ही चिपचिपा मौसम जो ज़ेहनो दिल का है,
के तेरी यादो का बादल बरसता रहता है

अली जी✍