जीना लाहद चाह रहे हैं मरने की सूरत हो कोई,

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जीना लाहद चाह रहे हैं मरने की सूरत हो कोई,
राज़-ए- हक ज़ाहिर भी होगा रूहे जन्नत हो कोई ।

सो गए थे हम तभी आंखें यहां जब खोली थी,
ख्वाबों में उलझे रहे यूं जैसे हकीकत हो कोई।

बदनसीबी है जहन्नम जन्नती होना नसीब,
खुल्द से बेहतर मिले जो ऐसी इबादत हो कोई।

कूचे-कूचे फिरता है समझे है खुद को दीन पर,
तू जमाती हक़ पे हो गर तेरी नसीहत हो कोई।

बे अमल जो बात करता है अमल हक़ देखिए,
तासीर-ए- अल्फ़ाज़ फ़ानी असरात जिल्लत हो कोई।

अर्ज़े-ए-नियाज़-ए-इश्क-ए-जाना अदलो-बदल दिलदार से,
हम भी दिल दे बैठेंगे गर हम सी तबीयत हो कोई।

अली जी✍️